(Intro – Soft Melody)
शंख बजे, मंत्र गूंजे,
फिर भी मन के घाव ना सूझे,
देवभूमि का बेटा हूँ मैं,
पर कलियुग की आग में झुलसा हूँ मैं।
क़िस्मत ने लिखे, जो घाव गहरे,
रगों में बसते शिव, कृष्ण मेरे,
राम की सीख, अर्जुन के तीर,
पर कलियुग में जलते हैं ज़मीर।
माँ की गोद में रोया था कल,
गंगा किनारे बहाया था पल,
शक्ति को पुकारा, विष्णु को ध्याया,
पर नियति ने फिर भी दर्द ही सुलाया।
पाप भी सहे, पुण्य भी पाए,
राहों में कांटे, फूल भी आए,
सौ बार टूटा, फिर भी संभला,
महादेव ने सिर पर हाथ जो रखा।
सौम्यजीत से बना Godjit का ये सफर,
आग में तपकर ही मिलता है असर।
हर घाव को मैंने खुद ही सिया,
अब मेरा नाम खुद विधाता ने लिखा।
दुनिया के छल को पहचान लिया,
खुद के ही दर्द को सम्मान दिया,
अब मैं ना झुकूंगा, ना टूटूंगा,
जो खोया उसे फिर से समेटूंगा।
कभी गिरा, कभी टूटा, फिर भी चला,
महाकाल के चरणों में चैन मिला।
सौ रातें जलकर, भोर हुई,
अब मेरा हर अश्क, मेरी ताक़त बनी।
अब ना रुकूंगा, ना गिरूंगा,
कालचक्र बदलेगा, मैं लिखूंगा।
सौ युगों का दुःख भी सह लिया,
मैंने सब खोया, फिर भी बना Godjit।
🎵🔥 (Melodic fade-out with chants of "Har Har Mahadev") 🔥🎵